LACK IN DILIGENCE…Could damage the men’s…FLOW OF RESISTANCE
MEANING in Hindi –
मनुष्य की लगन में रुकावट आना,
यही कारण मनुष्य की बाधा बन जाती है,
उसके शरीर में बाधा घातक विघुत धारा बनके तैरती है||
~ Ramdhun Singh
Home » Submitted Posts » Page 7 ग़ज़ल 1 ज़िक्र कुछ यार का किया जाये ग़ज़ल 2 इन्तिज़ार इन्तिज़ार है तो है एतिबार एतिबार है ग़ज़ल 3 दर्द जब दिल का दुबाला हो गया – सारथी बैद्यनाथ दोस्त कुछ ही चाहिए, आगे तक साथ निभाने को। ~ Urvashi soni लॉकडाउन यह लॉकडाउन नहीं जीवन रक्षक मंत्र है जिसने इसे बनाया वह तो है अपनी मस्ती में यह ना देखे जात पात ना ही देखे कोई धर्म फैले ना ये सब जगह इसलिए इस्तेमाल करे सैनिटाइज व मास्क ना हाथ मिलाये ना गले मिले बस कुछ दिन की तो बात आओ हम सब मिलकर ये पहल करें यह लॉकडाउन नहीं जीवन रक्षक मंत्र है ~ माही गुप्ता चलती हुयी राह से गुमराह हो गया था मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया था”? नींद से मेरा नाता टूट सा गया था मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया था”? अकेलेपन से मानो प्यार हो गया था मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया था”? अपनों के बिच में अनजान हो गया था मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया था”? आत्मविश्वास तोह मानों,.. जैसे खो गया था मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया था”? ~ शैलजा जाने वाले क्या कभी लौट कर भी आते हैं जाने का मन तो वो बहुत पहले बनाते हैं अपने ही घर से ये चोरों जैसा निकलना नहीं दे सकते जो मोहब्बत का दाना पानी अपनी शोहबत में जिसे करते थे रोशन क्यों अपना इंतजार मुल्तवी करके जाते हैं जब कर ही चुके होते हैं किसी और से दिलदारी गुफ्तगू अपनी आंखों से मासूम दिल पर खंजर क्योंकर चलाते हैं… घर के सारे साजो सामान जब अपने साथ ले जाते हैं अपनी खुशबू को कोनों में बिखराकर उसे क्यों नहीं समेट जाते हैं… ये जाने वाले भी भला कहाँ लौटकर आते हैं जाने वाले क्या कभी लौट कर भी आते हैं ~ Nupoor Kumari Submitted Posts
मनुष्य की लगन में रुकावट
आखरी खत शायरी
ज़िक्र कुछ यार का किया जाये | Gazal
ज़िन्दगी आ ज़रा जिया जाये हो
चुकी हो अगर सज़ा पूरी
दर्दे -दिल को रिहा किया जाये
चाँद छूने के ही बराबर है
मखमली हाथ छू लिया जाये
दर्द-ओ-ग़म की बहुत ज़रूरत है
चल कहीं दिल लगा लिया जाये
हसरतें ईद की अधूरी हैं
ख़ामुशी से जता दिया जाये
तो है छोड़ कर मुझको सिर्फ़ इक वो चाँद हिज़्र का राज़दार है
तो है बावला दिल मेरी तो सुनता नहीं आपका इख़्तियार है
तो है मैं हूँ नादाँ अगर तो हूँ तो हूँ वो अगर होशियार है तो है
दीद का लुत्फ़ हो गया हासिल अब नज़र कर्ज़दार है तो है
चेह्रा चेह्रा इक रिसाला हो गया
रात भर पढ़ते रहे हम चाँद को
आसमाँ इक पाठशाला हो गया
लोरियाँ माँ ने सुनाई और फिर
मेरे सपनों में उजाला हो गया
जब अना कुचली गई तो ये हुआ
आँख रोई दिल में छाला हो गया है
मुहब्बत आबे-ज़मज़म की तरह
पी लिया जिसने वो आला हो गयाकोरोना मुक्त विश्व बनाना है
अनगिनत न सही गिनती के, पर सुन सके अनकहे भावों को।
भीड़ है बहुत यहाँ .. सब अपने राग में मग्न हैं।
तुमसे ही विश्व बना है… तुमसे ही विश्व बना है…
अपने राग को छोड़ कर अब इस राग पर आना है।
अपने आप को सुरक्षित रख कर दूसरों को जिताना है..
कोरोना मुक्त विश्व बनाना है।
अब तक कितने अपनो को खोया? अब किसका इंतज़ार है?
अब और नहीं जाने देना जानें आओ ऐसी दोस्ती निभायें,
हम भी जीतें… और दूसरों को भी जितायें।
आओ सब मिलकर इसे अपनी आवाज़ बनाएं..आसुओं की बुँदे टपक रही हैं
यह लॉकडाउन नहीं जीवन रक्षक मंत्र है
जिससे बचना है हमें उसका नाम कोरोना षड्यंत्र है|
अब यह फैल रहा हम लोगों की बस्ती में|
यह तो अपने चक्कर में सब को लपेटे चाहे राजा हो या रंक|
इन दोनों को देखकर ही कोरोना दूर से ही जाता भाग|
एक बार सब ठीक हो जाए फिर मिलते रहिए दिन रात|
दूर दार रहकर ही चहल करें|
जिससे बचना है हमे उसका नाम कोरोना षड्यंत्र है|मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया था”?
ज़िन्दगी को लेकर बेपरवाह हो गया था
भूख प्यास से भी ये मन रूठ सा गया था
एक सच्ची ख़ुशी के लिए दिल लाचार हो गया था
बिना वजह आँखों में आंसू लाना बड़ा आसान हो गया था
आँखें तो खुली थी, मगर आत्मा कबका सो गया थामशगुल था वो अपने यारों में
जाने वाले क्या कभी लौट कर भी आते हैं
छोड़ गए थे जिसे क्या उसे वापस अपना बनाते हैं
फिर क्यों किसी को बताकर नहीं जाते हैं
भला उन्हें क्यों मुनासिब लगता है,
समझते क्यों नहीं यूं घर की लानतें भी साथ ले जाते हैं…
जाने से पहले वे मोहब्बत की जंजीर तोड़ क्यों नहीं देते हैं
तो प्रेम के पिंजड़े खोल क्यों नहीं देते हैं
उसे जंगल के अंधेरे में अकेला छोड़ क्यों देते हैं…
लौट कर नहीं आना है ये सीधे क्यों नहीं बतलाते हैं
तब भी क्यों रखते हैं पहले सी जारी…
जो साथ निभाना नहीं आता तो क्यों झूठे कसमें वादे खाते हैं
जाने से पहले वे अपने हुस्न को जो इतना सजाते हैं
अपने दिल का आईना क्यों नहीं चमकाते हैं…
ले जाते हैं घर की रोशनी, हवा, खुशियां सारी
तो अपनी यादों को क्यों छोड़ जाते हैं
अपनी जुदाई पर जो जीते जी मौत से अजीज कर देते हैं
पेट में छुरा भोंककर क्यों नहीं जाते हैं….
अपने तबस्सुम से महकाया था जिसे कभी
उसे लौटकर फिर गले लगाना तो दूर की बात
उसकी मौत पर दुआ करने भी वापस नहीं आते हैं
छोड़ गए थे जिसे क्या उसे वापस अपना बनाते हैंइश्क़ करने से पुरे शहर में बदनाम हो गया