ग़म है या ख़ुशी है, पर मेरी ज़िन्दगी हैं तू.. आफतों के दौर में, चैन की घडी हैं तू.. मेरी रात का चराग, मेरी नींद भी हैं तू.. मैं फिजा की शाम हूँ, रूत बहार की हैं तू.. दोस्तों के दरमियान, वजह-ए-दोस्ती है तू.. मेरी सारी उम्र में, एक ही कमी हैं तू..
गैरों के चेहरों पर भी मुस्कान सजाई थी हमने पर यहाँ तो नजर तक लग जाती हैं ज़माने की क्या बताऊँ तुझे हाल-ए-दिल अपने ए-दोस्त.. यहाँ सजाये मिलती हैं दोस्ती दिल से निभाने की
हम शरीफ इतने हैं के खुली किताब बने बैठे है, और वो चेहरे पे मुखौटा और झूठ का लिबास पहने हुए बैठे हैं, और हमारी बेदागी को वो महफ़िल पर दाग कहते हैं। महफ़िल में साफ कपड़े पहने दागदार लोग बैठे है,
पौधा अच्छे से उग नहीं सकता, बिना खाद याद आता है मुझे आपके हाथो से खिलाए खाने का स्वाद, निकल चुका हुआ जीवन के सफर पर होने आबाद बस बची यही मेरी आखिरी मुराद काश फिर से मिल पाता आपका आशीर्वाद।
हमारे देश के लोग बच्चे की काबिलियत को नहीं बस अपने फायदे को देख लेते हैं एक बच्चा जो क्रिकेटर बनना चाहता हैं उसे IIT, Neet जैसी कोचिंग भेज देते हैं कामयाबी मिले भी तो मिले कैसे, अरे कामयाबी मिले भी तो कैसे मिले ये मछली को आसमान में और पंछी को तालाब में फेंक देते हैं…… हमारे देश के लोग बच्चे की काबिलियत को नहीं बस अपने फायदे को देख लेते हैं