दोस्ती….
कभी-कभी तू मुझमे उलझ-सी जाती है
कभी – कभी तू गुस्सा हो जाती है
पर तुझमे उलझ कर ही तो….
मैं सुलझी हू तेरे गुस्से मे भी प्यार है
ऐ! दोस्त तेरे ऐसे एहसानो की भरमार है
तभी तो मेरे जीवन मे खुशीयो की बहार है।
– Anjali Kachhwaha
Home » Submitted Posts » Page 2 कहीं अंधेरा, कहीं उजाला इस सृष्टि का खेल अनजाना, चली आ रही सदा से ये रीत, खुशियाँ हैं अपार कहीं, ~ Yograj Jangir Bagora हाँ तो अब हम कुछ बदले बदले से हो गए हैं अब हम हँसतें हैं लोगो को हंसाने के लिए अब हम अपने दिल का हाल उन्हें बताते नहीं हैं अब उन्हें परेशान कम किया करते हैं पर हम उनकी मुस्कान को भला कैसे भुलायेंगे प्यार वही है बस अब उनको बताते नहीं अब भी हम उनमे खोते जा रहे ~ Dhananjay Verma हर रोज अगर चाँद नजर आने लग जाएँ | हम अपने दीयों को बुझाना पसंद करेंगे, तेरी एक झलक मिल जाए अगर हमको, खुदा करे उस दिन जल्द सुबह न हो, फिर तो मयखाने जाने की जरूरत न पड़े, खुदा कसम तुम तब याद आते हो बहोत, यूँ तो आसान बहुत है शायर होना, ~ अब्दुल रहमान अंसारी (रहमान काका) Submitted Posts
दोस्ती में गुस्से में भी प्यार
कहीं अंधेरा, कहीं उजाला
कहीं धुप, कहीं छांव हैं।
कहीं अमीरी तो कहीं नंगे पांव हैं।
कहीं रूठना तो कहीं मनाना,
कहीं हँसना तो कहीं हंसाना।
कहीं शिक्षा सही तो कहीं गलत सीख।
तो कहीं गमों की झार हैं।
यही तो संसार हैं,
यही तो संसार हैं।झूठा सही मगर प्यार तो हो
दोस्ती आबाद
अब हम कुछ बदले बदले से हो गए
उलझे से थे अब कुछ सुलझे से हो गए हैं
अपना दिल-ए-हाल सब से छुपाने के लिए
हमे तकलीफ हो रही ये उनको बताते नहीं है
वो हमे भूल जाये ये मौका भरपूर देते हैं
इस एक तरफा प्यार को भला अब किसे दिखाएंगे
पर सच तो यही है उनको हम भूल पाते नहीं
वो हमारे नहीं पर हम उनके और भी ज्यादा होते जा रहे हैतेरी एक झलक मिल जाए अगर
जितने रोजेदार हैं सब ईद मनाने लग जाएँ |
आप जैसी आंधियां गर उसको बुझाने लग जाएँ |
हम तो हर शाम छत पर आने लग जाएँ |
जिस रात वो मेरे ख्वाब में आने लग जाएँ |
गर आप अपनी नजरों से पिलाने लग जाएँ |
जब कभी हम तुमको भुलाने लग जाएँ |
पर एक शेर कहने में तुमको जमाने लग जाएँ |सरहदों पर हिफाजत के लिए
एक अजनबी के घर में गुजारी है जिंदगी
बीते हुए लम्हो के साथ तुम्हारी याद बहुत आयी
मेरी तौहीन न कर