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मां के बिना कैसी जीवन की डगर

मां तो ममता का घर होती है।
पास हो तो कहां ये खबर होती है।।
दूर होते हैं तब ये एहसास होता है।
कि मां के बिना कैसी जीवन की डगर होती है।।

 

~ Rb Verman Pratapgarhi

 

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अपनों ने ही किया क़त्ल मेरी इच्छाओं का

बहुत दिन हो गए देखते देखते
अब मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ,

नादान था मैं….

नहीं था अंदाज़ा ज़माने के रीति रिवाज़ो का
वक़्त ने संघर्ष से सिखाया रुख परखना हवाओं का

फर्क नहीं पड़ा मुझपे दूसरों की बद्दुआओं का
अपनों ने ही किया क़त्ल मेरी इच्छाओं का

 

~ अतुल शर्मा

 


 

Bahut din ho gaye, dekhte dekhte,
Ab Main bhi kuch kahna chahta hu,
Naadan tha main…

Nahi tha andaja jamane ke reeti rivazo kaa…
Waqt ne struggle se sikhaya rukh parakhna hawao ka..

Fark ni pda mujhpe doosron ki badduao ka,
Apno ne hi kiya qatl meri icchao ka….

 

~ Atul Sharma

 

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पापा मैं आप से कुछ कहना चाहती हूँ

Emotional Poem Papa ke liye From beti

 

पापा मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूँ।
पापा मैं आपके साथ बैठना चाहती हूँ.

आपसे बहुत कुछ कहना चाहती हूँ..
अपने दर्द बयाँ कर रोना चाहती हूँ।

पापा मैं आपसे सब सीखना चाहती हूँ
जब भी दिल घबराता है..
आप को ही याद करती हूँ..

‘BE STRONG ‘पापा है ना
ये ख्याल आते ही शांत हो जाती हूँ।

न आप की बात बुरी लगती है
न मैं आपसे लड़ना चाहती हूँ।

पापा मैं आप से एक बात कहना चाहती हूँ।
मैं कई बार अकेली सी पड़ जाती हूँ..

मैं आप को आवाज़ लगाना चाहती हूँ।
पापा मैं आप को बहुत चाहती हूँ

हाँ, मैं कभी नही बताती..
मगर मैं आप के जैसा बनना चाहती हूँ।

पापा मैं आप से कुछ कहना चाहती हूँ….!

 

~ Anushthi Singh

 

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देश की बेटी हूँ, मुझे अब बस न्याय चाहिए

जैसा की हम सभी को पता हैं, हाथरस वाले केस में जो भी हुआ वो मानवता की, इंसानियत की हत्या है| इस देश में एक बेटी, एक औरत के लिए रहना कितना मुश्किल होने लगा है| अगर हम आज भी आवाज़ नहीं उठा पाएंगे या अपने आप के अंदर बसे हैवान को नहीं मार पाएंगे तो कल को ये हादसा किसी अपने के साथ भी हो सकता है, इसलिए हम सभी को इसके खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए, और इस तरह हो रहे अंन्याय पर न्याय की मांग करनी होगी |
हाथरस वाली बेटी, या देश में जितने भी ये घिनोने काम हुए है और हो रहे है, उन सभी बेटी की आत्मा, उनका मन, उनकी रूह सिर्फ और सिर्फ यही कह रहा होगा जो हम इस कविता में प्रस्तुत कर रहे है, इसे जरूर पड़े और लोगो से जरूर शेयर करे ताकि हम इस कविता के द्वारा ज्यादा से ज्यादा लोगो को समझा पाए की एक औरत की राह कितनी मुश्किल है, जहाँ एक तरह बेटियों को बेटो की बराबर जगह देने की बात होती हैं और दूसरी और ये दरिंदगी |

 

न्याय की मांग में एक बेटी पर कविता

Justice for Manisha Desh ki Beti Kavita

 

बचपन से ही लोगो ने समझाया …
पापा की इज्जत हूं,
बचा के रखना हर किसी ने बतलाया ,
हर शौक को खत्म कर मैंने,
सूट और 2 मीटर का दुप्पटे को अपनाया ,
बचपन से ही लोगो ने समझाया….

मां ने बोला दुपट्टा फैला के रखना ,
लड़के कुछ भी बोले,
लेकिन तुम कभी कुछ ना कहना ,
क्योंकि तुम बेटी हो,
तुम्हे तो ज़िन्दगी भर है सहना ,

बचपन से ही हर किसी का था यही कहना,,
बेटी हो बच के रहना ।
मैंने मां की बातो को ज़िन्दगी में उतार लिया ,
बड़ी सी कमीज़,
और तन को ढकने का पायजामा सिला लिया ,
देर रात तक बाहर ना रहना,
पापा की इज्जत हो ,
इन सब बातो को,
हर किसी ने मेरे सुबह का नाश्ता बना दिया ,
चाय में शक्कर के साथ इन बातो को भी मिला दिया ।।

एक दिन बाहर गई ….
फैलाकर दुपट्टा, बालों की सीधी चोटी,
क्योंकि मा ने बोला था
jeans, top, hairstyles ऐसी लडकिया safe नहीं होती ,
आगे बढी तो एहसास हुआ …
कोई मेरे पीछे हैं, मन घबराया, दिल जोर से चिल्लाया ,
लेकिन माँ की बाते याद आ गयी ,,,,
सूट, सलवार, सीधी चोटी,..और मैं लड़की ……
मुझे चिल्लाने का तो हक ही नहीं था ,
मेरे कदम रुक से गए थे..
मेरी साँस थम् सी गई थी,

बस उस वक्त पापा की इज्जत सामने आ खड़ी थी।।
ना रात थी , ना jeans था ….
यूँ दबोच मुझें नीचे गिराया , चिल्लाती भी तो कैसे??
माँ ने कभी चिल्लाना नहीं सिखाया ,
रुयी चिल्लायी कोई सुनने वाला नहीं था ,
मेरे जिस्म की नुमाईश, कोई ढकने वाला नहीं था ।।

लड़ी उस दम तक, जब तक पापा की इज्जत बचा सकती थी,
रोई गिड़गिड़ायी जब जब माँ की बाते याद आती थी,
हैवानियत जब हद से पार हो गई,
उस वक़्त मैं खुद से भी हार गई।।
जीना चाहती थी, बोलना चाहती थी,
अपने माँ के अंगना फिर से खेलना चाहती थी।।
बोलूँ भी तो किससे?? कौन मेरी बाते सुनेगा?
जीभ कटी मेरी, कौन मेरी आवाज़ बनेगा????

हड्डी तोड़े, पैर तोड़े इस दरिन्दगी को दुनिया से कौन कहेगा??
मेरे चरित्र पर अब उठे सवालो पर, अब कौन लड़ेगा??
फ़िर भी मैं लड़ना चाहती थी, इन दरिंदो से।।
लेकिन अब मैं अकेली हो गई थी आखे बंद कर,
न्याय की उम्मीद लिये मैं हमेशा के लिए सो गई थी।।।
लेकिन माँ से बहोत सारे सवाल अधूरे रह गए,
Jeans, top, सूट सलवार, रात दिन ??
माँ इनमे से अब क्या चुने ????

ना मुझे Candle March चाहिए,
ना ही Poster March चाहिए।।।
मैं भी इस देश की बेटी हु,
मुझे अब बस न्याय चाहिए …….

 

~ Shikha upadhyay

 

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Pyar Ke Effects Shayari

जब रंग मोहब्बत का चढ़ता है,
तो ख्वाहिशे शौकीन हो जाती है।
वादियां हँसीन और फिज़ाये संगीन हो जाती है,
दिल में चेहरा सिर्फ दिलबर का होता है ,
और सारी दुनिया रंगीन हो जाती है।
इश्क़ में मेहबूबा के दीवाने इस कदर मगरूर हो जाते है,
दुनिया के लिए अज़िब और आशिकी में अज़िज़ बनकर,
सारी दुनिया में मशहूर हो जाते है।

 

-आयुष्मान पांडेय

 

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कई आए इस जलती शमा को बुझाने

काले गरजते बादलों को धुआँ समझा हैं
मैंने आँधियों को भी हवा समझा हैं…

गिले शिकवे की मुराद हैं उन्हें हमसे
अब क्या बताए हमने दर्द को तो अपनी मेहबूबा समझा हैं

भरा दिल तोड़े कोई और वजह कोई
किसी को कितना कोसे अब हमने खुद को बेवफा समझा हैं

कई आए इस जलती शमा को बुझाने
यूँ ही बुझा जाए, क्या हलवा समझा हैं

 

~ Kshitij Muktikar

 

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ए खुदा तेरी रज़ा क्या है?

इन नसीहतों में मज़ा क्या है,
इन इनायतों में रखा क्या है,

जो मौलवी बने बैठे हैं यहाँ,
इनसे पूँछों इन्होंने करा क्या है।

भले आदमी का निशान क्या है,
असल नवाज़िश ए करम क्या है,

क्यों डरे भला क़यामत से इतना,
दर्द से निजात नहीं तो मौत क्या है,

इन तालिमों की वजह क्या है,
ए खुदा तेरी रज़ा क्या है,

हाँ मैं करता हूँ सवाल बोलो,
इन ग्रंथों में मेरी सज़ा क्या है।

~ Shubham Jain

 

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एक इंसान

इंसानो का इंसानो से इंसानियत का वास्ता ही कुछ और है,
हर एक इंसान का इस दुनिया में रास्ता ही कुछ और है,

मूर्खो से मूर्खो की बाते मूर्खो को समझ न आयी
एक मुर्ख खुसिया के बोला क्या तू समझा मेरे भाई?

अन्धो से अन्धो का तो अजीब ही नाता है,
हर अँधा दूसरे अंधे के नैनो की गहराही में खो जाता है !

ऐसे इस घमासान में बेहरे भी कुछ कम नहीं इतराते ,
समझे सुने मुमकिन नहीं पर गर्दन जरूर हिलाते।

गूंगे न जाने शब्दों से रिश्ता कैसे निभाते है,
केवल होठों को मिटमिट्याते हुए कैसे वे बतियाते है?

कर से अपंग भी लालसा में झूल जाते है,
हाय रे ये आलसी जानवर बिस्तर न छोड़ पाते है!

सयाने इतराते कहते लंगड़े घोड़े पर डाव नहीं लगाते,
और दूसरे ही मौके पर दुसरो के तरक्की में रोड़ा अडकते।

किस्मत के मारो का तो क्या कहना, ये दिमाग से पैदल होते है,
सामर्थ्यवान इस देश की उपज है मानो सारा कुछ यही सहते है।

इससे तो अच्छा सचमें इनके आँख, कान, जबान, पैर और हाथ न होते,
दिमाग तो फिर भी ठीक था पर दिल को मन में संजोते,

ऐसे इस इंसान का फिर भी जग में उद्धार जरूर होता,
इंसान फिर इंसानियत से कभी वास्ता न खोता।

 

~ Aashish Jain

 

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कितना Nalayak हूँ

पेशे से तो छात्र था.. अब Shayar हूँ
तुम्हे समझ सकता इस Layak हूँ
तुम्हारे लिए कितने ही झूठ बोले,
ज़रा सोचो कितना बड़ा Liar हूँ
पर तुम्हे समझ ना सका
Don’t you think कितना Nalayak हूँ

 

~ Piyush kr. Singh

 

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