ज़िन्दगी को पूरी तरह से जीने की कला, भला किसे अच्छे से आती हैं…… कही ना कहीं ज़िन्दगी में, हर किसी के कोई कमी तो रह जाती हैं….
प्यार का गीत गुनगुनाता हैं हर कोई, दिल की आवाज़ों का तराना सुनाता हैं हर कोई, आसमान पर बने इन रिश्तो को निभाता है हर कोई, फिर भी हर चेहरे पर वो ख़ुशी क्यों नहीं नजर आती हैं… पूरा प्यार पाने में कुछ तो कमी रह जाती हैं…. हर किसी की ज़िन्दगी में कही ना कही कुछ तो कमी रह जाती हैं….
दिल से जब निकलती हैं कविता… पूरी ही नजर आती हैं …. पर कागजों पर बिछते ही वो क्यों अधूरी सी नजर आती हैं शब्दों के जाल में भावनाएं उलझ सी जाती हैं प्यार, किस्सें, कविता…ये सिर्फ दिल को ही तो बहलाती है अपनी बात समझाने में तो कुछ तो कमी रह जाती हैं
हर किसी की निगाहें मुझे क्यों……. किसी नयी चीज़ो को तलाशती नजर आती हैं सब कुछ पा कर भी एक प्यास सी क्यों रह जाती हैं ज़िन्दगी में कही ना कही कुछ तो कमी रह जाती हैं सम्पूर्ण जीवन जीने की कला भला किसे आती है…..
एक दोस्त ऐसा भी हो, जो सिर्फ मेरा हो… मैं रोऊ तो मुझे हँसाए, मैं रूठू तो मुझे मनाए,
मेरे हर एक दुख में मेरे साथ हो, मेरी हर एक खुशी में मेरे साथ हो, मेरे बिन बोले मेरी बात समझे, मेरे बिन बोले मेरे दर्द को महसूस करें।
हां एक दोस्त ऐसा भी हो, जो मेरी हंसी के पीछे छिपे दर्द को पहचान ले, जो मेरे गिरने से पहले मेरा हाथ थाम ले, मुझे संभाल ले।
हां एक दोस्त ऐसा भी हो, जो जिंदगी की कठिन राह पर, मेरा मार्गदर्शक बने। जो दुनिया की भीड़ में, मुझे तन्हा न छोड़े। जो अंधेरे में मेरी रोशनी बने, हां एक दोस्त ऐसा भी हो।
हां एक दोस्त ऐसा भी हो, जिसका साथ पाकर मैं हर गम भूल जाऊं, जो मेरे साथ चले तो लगे, जैसे कि मेरी ही परछाई।
एक दोस्त ऐसा भी हो, जो मुझे खोने से डरे, जिसे मेरी कमी महसूस हो, जब मैं उसके साथ ना हूँ तो, हां एक दोस्त ऐसा भी हो, जो मुझसे कभी नाराज ना हो। हां एक दोस्त ऐसा भी हो, जो सिर्फ मेरा हो, सिर्फ मेरा।
कभी मुख्तसर खुशी कभी इंतहा ए ग़म हूं मैं कभी ज़ख्मों की वजह तो कभी मरहम हूं मैं इतने हिस्सों में बट चुका है किरदार मेरा की आजकल मैं थोड़ा कम हूं मैं ।।
अधुरे ज़ज्बात, अधुरे लफ़्ज और अधुरी बात अभी तो कितने ही सवाल मेरे यार बाकी हैं अधुरी यादें, अधुरे ख्वाब और ये आधी रात अब और क्या क्या सितम मेरे यार बाकी हैं