वो ख़्वाब ही क्या जिसे पूरा ना कर सके…. वो मंजिल ही क्या जिसे हासिल ना करे सके वो बेगुनाही ही क्या जिसे साबित ना करे सके और वो मोहब्बत ही क्या जिसके काबिल ना बन सके
ना जाने मुहब्बत में कितने अफसाने बन जाते है, शमां जिसको भी जलाती है, वो परवाने बन जाते है। कुछ हासिल करना ही इश्क कि मंजिल नही होती, किसी को खोकर भी, कुछ लोग दिवाने बन जाते है।
तेरी दुआओं का असर है, जो अब तक मैं सलामत हूँ.! तेरी आँखों की नमी नहीं, हाथों की लकीरों में बस्ता हूँ मैं जानता हूँ जान-ए-जहाँ, तुझे बस मोहब्बत है मुझ से तेरी साँसों की राह पकड़…., तेरी रूह में बस्ता हूँ….|