बेरुखी, बे-बसी, खुदगर्ज़ी हम ये जुर्म हमेशा सहते हैं
बेवफा हैं वो इस बात को हम सर-ए-आम क्यूँ नहीं कहते हैं
ज़िंदा रहना इस दुनिया में हर दिल की एक मज़बूरी हैं
तो जीने के लिए हम क्यों उनकी यादों का सहारा लेते है
~ Sunil Dehgawani
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जीने के लिए हम क्यों उनकी यादों का सहारा
Posted on by techi