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Zindagi ki uljhano me itna ulajh gye hum….!
Dusro ko apna kahte-kahte……..!
Khud ko apnana bhul gye hum………!!!!
~ Smiruchika
जिंदगी की उलझनों में इतना उलझ गए हम….!
दुसरो को अपना कहते-कहते……..!
खुद को अपनाना भूल गए हम….
~ समिरुचिका
जो जीते हैं सिर्फ़ अपनी खुशियों के लिए, उनके लिए रिश्तों का मोल होता नहीं है।
खो जाते हैं वो किसी दूसरी दुनिया में, वास्तव में उनके लिए कोई रोता नहीं है।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
“ज़िंदगी जियो ज़िंदादिली से।
हारना मत कभी बुज़दिली से।”
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
हारकर खामोश हो गया ज़िन्दगी से, थककर चूर हो गया ज़िन्दगी से,
कोशिश फिर भी जारी है, अभी लड़ाई ख़त्म नहीं ज़िन्दगी से।
~ उमेश मुकाती
इतनी दूर न जाना कि लौट न सको
इतना व्यस्त न होना, कि बैठ न सको।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
कुछ बिगड़ गए, कुछ सुलझ गए, कुछ उलझ गए सुलझाने में।
हर शख्स की अपनी कहानी है, जो डुब गए पयमाने में।
~ Anushthi Singh
हर किसी को दरकार है शोहरत और दौलत की,
कमाया किस तरह जाए बहुतों को मालूम नहीं।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
लोग अच्छे भी हैं यहाँ पर, गले लगाने की ज़रूरत है।
प्यार भी है और तकरार भी, सिर्फ़ मुस्कराने की ज़रूरत है।
~ जितेंद्र मिश्र ‘बरसाने’
हंसना रोना खोना पाना, सब जीवन के रंग।
फ़ंसा आदमी माया में है कभी दुख है कभी उमंग।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
अब पहले जैसी ना रही ज़िंदगी बस सोचते सोचते गुज़र रही है,
मौज तो बचपन में थी यारों अब तो कामयाबी के फ़िकरों में निकल रही है।
~ Nitish Dutt
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