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निःस्वार्थ प्रेम और सच्चे रिश्तों का सिलसिला

जब तक लोगों के दिलों में निःस्वार्थ प्रेम पलता रहेगा।
तब तक सच्चे रिश्तों का सिलसिला चलता रहेगा।

 

~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’

 

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दिल को छूने वाली लाइन्स घर के बड़े और बुज़ुर्गों पर

बुज़ुर्गों की कीमत समझो, वे अमूल्य होते हैं।
अनुभव तमाम जीवन के, उनके करीब होते हैं।
माना कि आजकल लोग, इनको तवज्ज़ो नहीं देते।
पर जिनके साथ रहते हैं ये, वे बड़े ख़ुशनसीब होते हैं।

 

~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’

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इंसान पर बेहतरीन पंक्तिया

देखने में तो बहुत आसान है, पर आसान नहीं है।
वह लगता है परेशान, पर परेशान नहीं है।
लानत है जो किसी के, कुछ काम नहीं आता।
कहे वह अपने को इंसान, पर वह इंसान नहीं है।

 

~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’

 

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मेरी मजबूरी को समझो मैं गुनाहगार नहीं

मेरी मजबूरी को समझो मैं गुनाहगार नहीं हूँ।
मैं सच्चाई के साथ हूँ, झूठ का पैरोकार नहीं हूँ।
भले ही तुम मेरी, मजबूरियां ना समझो।
मैं तुम्हारा साथी हूँ कोई अपराधियों का यार नहीं हूँ।

 

~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’

 

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कोरोना महामारी का बुरा दौर थम जाएगा

छतों पर पतंगों का, दौर फिर आएगा।
हर आदमी हंसेगा, और मुस्कुराएगा ।
आबाद होंगे गली, मोहल्ले चौराहे सब।
जब कोरोना महामारी का, बुरा दौर थम जाएगा।

 

~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’

 

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ज़िंदगी का कारवां यूं ही चलता गया

ज़िंदगी का कारवां यूं ही चलता गया
कोई हमदर्द और कोई ख़ुदगर्ज़ मिलता गया।
कभी ख़ुशियाँ थीं तो कभी दुख की बरसात हुई
बचपन से ज़वानी और फ़िर बुढ़ापे का सफ़र बढ़ता गया।।

~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’

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