मुश्किलों के दौर में थोड़ा संभल कर चलो,
अनुभवों से सीख लो और निखर कर चलो।
कठिनाइयाँ तो आएंगी और चली जाएंगी,
सजग होकर इसी तरह नए सफ़र पर चलो।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
प्यार के गीत गाते रहो
तुम सदा यूं ही मुस्कुराते रहो।
ज़िंदगी की बड़ी है कठिन डगर,
ख़ुशियों के गीत सदा गुनगुनाते रहो।
हंसते-हंसते ये रास्ता कट जाएगा,
गम का बादल सदा यूं ही छंट जाएगा।
प्रेम की डोर यूं ही पकड़ कर चलो,
कुछ ना कुछ बोझ जीवन का बंट जाएगा।
उदासी न हो ना ही अफ़सोस हो,
मन में यूं ही हमारे नया जोश हो।
प्रीत पलती रहे ज़िंदगी में सदा,
मन में अपने न कोई आक्रोश हो।
प्यार के गीत गाते रहो………….।।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
दो घड़ी के लिए
दो घड़ी के लिए, बैठ जाया करो।
मां बाप के पास भी कभी आया करो।
दो घड़ी के लिए……..।।
कभी उंगली पकड़कर, चलना सिखाया था।
कभी उनको भी बाहर घुमाया करो।
दो घड़ी के लिए…….।।
प्यार के दो बोल, अनमोल हैं।
प्यार से कभी तुम, मनाया करो।
दो घड़ी के लिए……..।।
माना तुम पढ़ लिखकर, इंसान हो गए।
कभी तो इंसानियत, दिखाया करो।
दो घड़ी के लिए……..।।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’