Home » Jitendra Mishra नफ़रतें छोड़कर मन से, प्रेम के गीत हम गाएं। आपसी बैर को भूलें, अपनों से भी मिल आएं। सभी त्योहार बतलाते, सदा प्रेम से रहना। सभी घर के बुज़ुर्गों को, कभी मन से न बिसराएं।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
रंगों का पर्व होली, देखो फिर आ गया नवरंग से सजा हुआ, बादल जो छा गया सभी लोग कर रहे हैं, हंसी और ठिठोली आओ प्रेम से खेलें, यह पर्व जो होली…
आप सभी को होली की शुभकामनाएं
~ ‘जितेंद्र मिश्र’
“ज़िंदगी जियो ज़िंदादिली से। हारना मत कभी बुज़दिली से।”
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
बोझ न रखिए दिल पर इतना। दिल तो भारी हो जाएगा। मन की बात किसी से कहिए। दिल तब खाली हो जाएगा।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
“छोटे घरों में दिल करीब थे। बड़े घर बंटवारा कर गए।”
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
हम स्वार्थ की ज़मीन पर नफरतों का बीज बो रहे हैं। झूठी शान और लालच में हम रिश्तों को खो रहे हैं।।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
गुलाब की तरह ख़ुशमिज़ाज रहो। चमकते-दमकते आफ़ताब रहो। तुम जहां जाओ महफ़िलें लूट ल़ो। सभी के ज़िगर में सरताज़ रहो।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
मन के अंदर झांक रहा है मन मेरा। मन की भाषा बोल रहा है मन मेरा। मन भावों का एक समुंदर होता है। मन चंचल है घूम रहा है मन मेरा..।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
तुम्हारी बातों में दिल आ गया था। नज़र जब मिली थी मैं शर्मा गया था। अदाओं ने तेरी, दिल मेरा छीना। तेरा मुस्कराना गज़ब ढा गया था।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
हर किसी को दरकार है शोहरत और दौलत की, कमाया किस तरह जाए बहुतों को मालूम नहीं।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
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