जो जीते हैं सिर्फ़ अपनी खुशियों के लिए, उनके लिए रिश्तों का मोल होता नहीं है। खो जाते हैं वो किसी दूसरी दुनिया में, वास्तव में उनके लिए कोई रोता नहीं है।
गांव के बाजारों में भी, खूब नज़ारे होते थे। चाट पकौड़ी और बताशों के चटकारे होते थे। नीम और बरगद की छाया में बैठा करते थे। खुशियों के पल आपस में वारे न्यारे होते थे।
नफ़रतें छोड़कर मन से, प्रेम के गीत हम गाएं। आपसी बैर को भूलें, अपनों से भी मिल आएं। सभी त्योहार बतलाते, सदा प्रेम से रहना। सभी घर के बुज़ुर्गों को, कभी मन से न बिसराएं।