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घबराने से मसले हल नहीं होते
जो आज है, वो कल नहीं होते।
ध्यान रखो इस बात का ज़रूर
कीचड़ में सब कमल नहीं होते।
नफ़ा पहुँचाते हैं जो जिस्म को
मीठे अक्सर वो फल नहीं होते।
जुगाड़ करना पड़ता है हमेशा
रस्ते तो कभी सरल नहीं होते।
दर्द की सर्द हवा से बनते हैं जो
वो ठोस कभी तरल नहीं होते।
नफ़रत की खाद से जो पेड़ पनपते हैं
मीठे उनके कभी फल नहीं होते।
जो आपको आपसे ज्यादा समझे
ऐसे लोग दरअसल नहीं होते।।
मर्द और बलात्कार विषय पर ये पंक्तियाँ अवश्य पढ़ियेगा –
“मर्द कभी बलात्कार नहीं करते हैं,
माँ की कोख शर्मशार नहीं करते हैं..
मर्द होते तो लड़कियों पर नहीं टूटते,
मर्द होते तो आबरू उनकी नहीं लूटते..
मर्द हमेशा दिलों को जीतता है,
कुचलना नामर्दों की नीचता है…
बेटियां बहन मर्द के साये में पलती हैं,
मर्द की जान माँ की दुवाओं से चलती है..
मर्द नहीं फेकते तेज़ाब उनके शरीर पर,
मर्द प्रेम में मिट जाते हैं अपनी हीर पर..
मर्द उनको देह की मंडियों में नहीं बेचता,
मर्द दहेज़ के लिए उनकी खाल नहीं खेचता..
मर्द बच्चियों के नाजुक बदन से नहीं खेलते,
मर्द बेटियों को बूढों के संग नहीं धकेलते…
निर्भया-कांड के बाद क्या बलात्कार बंद हुए !!
कानून तो बदल गये पर क्या सोच भी बदल गयी !!
सोच बदलना आवश्यक हैं क्यो की सोच बदलेगी,
तो हम बदलेंगे और हम बदलेंगे तभी देश बदलेगा
शेर घायल है मगर दहाड़ना नहीं भूला
एक बार में सौ को पछाड़ना नहीं भूला।
कुत्ते समझ रहे हैं कि, शेर तो हो चुका है ढ़ेर
उन्हें कौन समझाए कि, ये तो समय का है फेर।
साज़िश और षड्यंत्र के बल पर, हुआ यह सब
वरना आज तक कोई, शेर को मार सका है कब।
विरोधियों ने बैठक बुलाई, नई-नई योजना बनाई
सिंह को वश में करने के लिए, चक्रव्यूह रचना सुझाई।
चौकन्ना एक चीता, हालात जो सब समझ चुका था
ऐसे ही एक जाल में, बहुत पहले खुद फंस चुका था।
कुत्ते गीदड़ सियार लोमड़ी, बेशक सब गए हो मिल
अपनी ही चाल में फंसेगे सब, नहीं अब ये मुश्किल।
शेर ज़ख़्मी है लेकिन शिकार करना नहीं भूला
पंजों से अपने घातक प्रहार करना नहीं भूला।।
ना मुसलमान खतरे में है,
ना हिन्दू खतरे में है
धर्म और मज़हब से बँटता
इंसान खतरे में है।।
ना राम खतरे में है,
ना रहमान खतरे में है
सियासत की भेट चढ़ता
भाईचारा खतरे में है।।
ना कुरआन खतरे में है,
ना गीता खतरे में है
नफरत की दलीलों से
इन किताबो का ज्ञान खतरे में है।।
ना मस्जिद खतरे में है,
ना मंदिर खतरे में है
सत्ता के लालची हाथो,
इन दीवारो की बुनियाद खतरे में है।।
ना ईद खतरे में है,
ना दिवाली खतरे में है
गैर मुल्कों की नज़र लगी है,
हमारा सदभाव खतरे में है।।
धर्म और मज़हब का चश्मा
उतार कर देखो दोस्तों
अब तो हमारा
हिन्दुस्तान खतरे में है |
एक बनो, नेक बनो
ना हिन्दू बनो ना मुसलमान बनो,
अरे पहले ढंग से इंसान तो बनो।।
तू जिंदगी को जी,
उसे समझने की कोशिश न कर
सुन्दर सपनो के ताने बाने बुन,
उसमे उलझने की कोशिश न कर
चलते वक़्त के साथ तू भी चल,
उसमे सिमटने की कोशिश न कर
अपने हाथो को फैला, खुल कर साँस ले,
अंदर ही अंदर घुटने की कोशिश न कर
मन में चल रहे युद्ध को विराम दे,
खामख्वाह खुद से लड़ने की कोशिश न कर
कुछ बाते भगवान् पर छोड़ दे,
सब कुछ खुद सुलझाने की कोशिश न कर
जो मिल गया उसी में खुश रह,
जो सकून छीन ले वो पाने की कोशिश न कर
रास्ते की सुंदरता का लुत्फ़ उठा,
मंजिल पर जल्दी पहुचने की कोशिश न कर !
कोशिश कर, हल निकलेगा।
आज नही तो, कल निकलेगा।
अर्जुन के तीर सा सध,
मरूस्थल से भी जल निकलेगा।।
मेहनत कर, पौधो को पानी दे,
बंजर जमीन से भी फल निकलेगा।
ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे,
फौलाद का भी बल निकलेगा।
जिन्दा रख, दिल में उम्मीदों को,
गरल के समन्दर से भी गंगाजल निकलेगा।
कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की,
जो है आज थमा थमा सा, चल निकलेगा।।