गुजर रही हैं ज़िन्दगी ऐसे मुकाम से,
अपने भी दूर हो जाते हैं जरा सी झुकाम से
तमाम कायनात में एक कातिल बीमारी की हवा हो गयी
वक़्त ने कैसा सितम ढाया की “दूरिया ही दवा” हो गयी
~ unknown
“बे वजह घर से निकलने की जरुरत क्या है”
मौत से आँखे मिलाने की जरुरत क्या है
सब को मालूम है बाहर की हवा है कातिल
यूँही कातिल से उलझने की जरुरत क्या है
ज़िन्दगी एक नेमत है उसे संभाल के रखो
कब्रगाहों को सजाने की जरुरत क्या है
दिल बहलाने के लिए घर में वजह है काफी
यूँही गलियों में भटकने की जरुरत क्या है”
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