ज़िंदगी का कारवां यूं ही चलता गया
कोई हमदर्द और कोई ख़ुदगर्ज़ मिलता गया।
कभी ख़ुशियाँ थीं तो कभी दुख की बरसात हुई
बचपन से ज़वानी और फ़िर बुढ़ापे का सफ़र बढ़ता गया।।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
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बचपन का एक सपना, यार लेनी थी एक रिमोट वाली कार, फिर दिन निकले हम बढ़ते गए, फिर ज़िद्द करना ही छोड़ दिया, बचपन का एक सपना, ~ अतुल शर्मा
Bachpan
ज़िंदगी का कारवां यूं ही चलता गया
Bachpan ka ek sapna, jo kabhi pura nahi hua
जो कभी पूरा नहीं हुआ
जिसके लिए बहुत सुनी फटकार,
और कहा गया की
ज़िद्द करना नहीं है एक अच्छा संस्कार,
पुरानी बाते भूलते गए,
छोटी छोटी इन बातों से,
हम थोड़ा थोड़ा सीखते गए,
अपनी ही दुनिया बुनते गए
और ऐसे ही धीरे धीरे
हम अच्छा बच्चा बनते गए
जो कभी पूरा नहीं हुआअब जीने में वो बचपन वाली बात नहीं