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बेदर्दी से क़त्ल

कैसा हाल है हमारा, अब ना पूछो हमसे
फिर से वो कहानी अब ना सुना पाएंगे
किसने किया हैं यूँ बेदर्दी से क़त्ल हमारा
उस कातिल का नाम ना हम बता पाएंगे

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किस्मत ने भी जाने कितनो को हराया

किस्मत के खेल को, कौन जानता था,
जो आज मेरा हैं वो कल पराया होगा,
जानकर भी रोक ना पाते तकदीर की रवानी को,
किस्मत ने भी जाने कितनो को हराया होगा

~ मीना

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तुमने ही हंसी दी थी, तुमने ही रुलाया हैं

एक प्यार के मुजरिम से उल्फत भी करे तो कैसे करे,
तुम्हे टूट के चाहा था नफरत भी करे तो कैसे करे,
जो प्यार हमे करता उसने ही डुबाया हैं,
क्या प्यार में सोचा था क्या प्यार में पाया हैं,

 

तुम जो भी हमे समझो पर तुमको सदा सरहाएंगे हम,
चाह कर भी तुम्हे भुला ना पाएंगे हम,
तुमने ही हंसी दी थी, तुमने ही रुलाया हैं
क्या प्यार में सोचा था, क्या प्यार में पाया हैं…

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क्या प्यार में सोचा था, क्या प्यार में पाया हैं

क्या प्यार में सोचा था, क्या प्यार में पाया हैं,
तुझको मिलाने की चाहत में, खुद को मिटाया हैं,
इस पर भी कोई इलज़ाम, ना तुझ पर लगाया हैं
मेरी ही ख्वाईशो ने, आज मुझे अर्थी पर सुलाया हैं

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मेहबूब की याद में रोती हुयी आँखों पर शायरी

रात भर रोती रही वो आँखें,
जाने किसकी याद में जागती रही वो आँखें।

अश्को की अब क्या कीमत लगायी जाये
की हर आंसू के गिरते,
किसी को पुकारती रही वो आँखें।

पलकों पे तस्वीर लिए मेहबूब का,
तरसती रही वो आँखें।

कहना चाहा बहुत कुछ,
पर खामोश रही वो आँखें।

उन आँखों को चाहिए था दीदार अपने मेहबूब का
जो रूठ के चला गया हैं कही दूर,
उसके लौट आने की राह तख्ती रही वो आँखें..।।

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तनहा मौसम और उदास रात की शायरी

तन्हा मौसम है और उदास ‪‎रात‬ है
वो मिल के बिछड़ गये ये ‪‎कैसी मुलाक़ात‬ है,
दिल धड़क तो रहा है मगर ‎आवाज़‬ नही है,
वो धड़कन भी साथ ले गये ‎कितनी अजीब‬ बात है!

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प्यार में धोखा और बेवफा पर शायरी

बेवफा तो वो खुद थी,
पर इलज़ाम किसी और को देती हैं

पहले नाम था मेरा उसके होंठो पर,
अब वो नाम किसी और का लेती हैं,

कभी लेती थी वादा मुझसे साथ ना छोड़ने का
अब यही वादा वो किसी और से लेती हैं..||

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रौशनी के लिए दिल जलाये जाते हैं

बारिशों का क्या हैं, आजकल तो आँखों से बरसती हैं
तन्हाई में महफ़िल आखिर कहाँ सजा करती हैं
शंमायें भुझती हैं, और परवाने पिघलते हैं….
लोग तो रौशनी के लिए अपना दिल जलाये जाते हैं

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गर नजरो ने तेरी यूँ गिराया ना होता

ज़ख्मो पे मरहम कभी लगाया तो होता
मेरे आंसुओ के लिए दामन बिछाया तो होता

बदनामियों के बोझ से जब गर्दन झुक गयी
कन्धा अपना तुमने बढ़ाया तो होता

गिर गिर के संभल जाते फिर गिरने के लिए
अगर नजरो ने तेरी यूँ गिराया ना होता

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