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एक अजनबी के घर में गुजारी है जिंदगी

एक अजनबी के घर में गुजारी है जिंदगी |
लगता है जैसे सफर में गुजारी है जिंदगी |
ये और बात है कि मैं तुझसे दूर हूँ,
लेकिन तेरे अशर में गुजारी है जिंदगी |

 

~ अब्दुल रहमान अंसारी (रहमान काका)

 

 

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उनको पहचानने से मुकर गए

महफिल में हम भी उनको पहचानने से मुकर गए,
महफिल में हम भी उनको पहचानने से मुकर गए,
जब वह भी अनदेखा कर, नजदीक से गुजर गए ll

 

~ रवि कुमार गहतराज

 

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दोस्ती निभाने की सजा

गैरों के चेहरों पर भी मुस्कान सजाई थी हमने
पर यहाँ तो नजर तक लग जाती हैं ज़माने की
क्या बताऊँ तुझे हाल-ए-दिल अपने ए-दोस्त..
यहाँ सजाये मिलती हैं दोस्ती दिल से निभाने की

~ ख्वाइश

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आखरी मुलाक़ात के बाद भी उसका याद आना

किसी को पा कर भी दूर रहना हमसे पूछो,
क्या होती हैं किस्मत में रुकावट हमसे पूछो,
यहाँ कहने को तो सब कुछ अपना हैं लेकिन,
आखरी मुलाक़ात के बाद भी उसका याद आना हमसे पूछो

 

~ रवि भल्ला

 

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मंदिर का मेरे भगवान कहाँ हैं

शायर सी मेरी पहचान कहाँ हैं
किराये का मेरा मकान कहाँ हैं

जान दे दे यहाँ किसी के लिए
अब इतनी किसी में जान कहाँ हैं

दिल से बेघर हुए लापता भी हुए
कौन जाने मेरे अरमान कहाँ हैं

सिर्फ सुनते रहे जो बेगम की हम
आज ढूढ़ा किये खानदान कहाँ हैं

पुजारी ने थाने में लिखाये रिपोर्ट
मंदिर का मेरे भगवान कहाँ हैं

 

~ साजिद घायल

 

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विश्वास जब टूट जाता है

बिखरते हैं रिश्ते विश्वास जब टूट जाता है,
जोड़ना लाख चाहे मगर ये धागा टूट जाता है|
कभी जो आइना देखो तो खुद ही जान पाओगे,
जरा सी ठेस लगते ही शीशा टूट जाता है|

 

~ Ashok

 

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कुदरत का कहर पूरी दुनिया पर

बन कर कुदरत का कहर पूरी दुनिया पर है बरसा
वक्त कुछ यूं बदला कि इंसान सांसों तक को है तरसा
अब भी वक्त है संभल जाओ यारों
कही बाद में ना कहना पड़े अब तो बीत चुका हैं अरसा।

 

~ Abhishek Mishra

 

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अब इश्क़ मिटाया जाएँ

अब कुछ बातें छुपाई जाएँ तो ठीक होगा
ये दूरियां बढ़ायी जाएँ तो ठीक होगा

पास रहने के वादें सारे टूट चुके हैं
कशमें दूर रहने की खायी जाएँ तो ठीक होगा

यूँ कब तक बस मजबूर होते रहेंगे
एक दूसरे के हाथों चूर होते रहेंगे

लोगो की बातें अब ज्यादा समाज आने लगी हैं
ये पलके नमी दिखाने लगी हैं

अपने हक़ में कुछ ना कहा जाएँ तो ठीक होगा
अब इश्क़ मिटाया जाएँ तो ठीक होगा

 

~ गुरुदेव सिंह

 

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यहां हर एक का बदला हुआ रंग देखा

इश्क, दोस्ती, मतलब देखा…
इस जमाने मे हमने बहुत कुछ देखा…

लोग देखे लोगों का ढंग देखा…
यहां हर एक का बदला हुआ रंग देखा…

कही घाव, कही मरहम, कही दर्द देखा…
यहां अपनों के हाथ मे खंजर देखा…

कभी रात, कभी दिन देखा…
कही पत्थर का दिल, तो कही दिल पर पत्थर देखा…

कभी हकीकत, कभी बदलाव देखा…
यहां हर चेहरे पर दोहरा नकाब देखा…

चाहत, जिस्म, फिर धोखा देखा…
यहां मोहब्बत के नाम पर सिर्फ मौका देखा…

जीते-जी बस यही देखना बाकी था, अंश…
एक उसे भी, किसी और का होते देखा…

~ अंश

 

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