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मैं बारिश में चलता हूँ, ताकि कोई मेरे आँसू न देखले
मैं अँधेरे में चलता हूँ, ताकि कोई मेरे चेहरे पर डर न देखले
मन ही मन बोलता है, ताकि कोई मेरा टूटा हुआ दिल नहीं सुन सके
मैं इतना अकेला हूं कि, दूसरों के साथ रहना भी भूल गया हूं
एक हतषा ऐसी कि, मैं दूसरों पर भरोसा करना भी भूल गया हूं।
झूठा इतना हंसा, कि अब मैं अपनी असली मुस्कान भी भूल गया हूं
अरे ज़िन्दगी तुम क्या चाहती थी, मैं तो जीना भी भूल गया हूँ।
~ Chanchal Goyal
जिन आँखों में ख्वाब रहा करते थे उनमें ये डर कैसा है?
जिस घर मुझे घर सा नहीं लगता ये मेरा घर कैसा है?
नाज़ुक सी ज़िन्दगी इतने कठोर सवालो से भरी क्यों है?
जो मुझे चाहिए वो किसी और की बाहों में भरी क्यों है?
इन सवालो के जवाब में नए सवाल क्यों है?
वो भी एक आम सा ही लड़का होगा आखिर
उसके लिए इतना बवाल क्यों है?
मेरी तरह क्यों कोई नहीं मिलता ?
दिल मिलकर दिल क्यों नहीं मिलता ?
हमसे ज़िन्दगी कुछ खास मोहब्बत करती है क्या?
जो चाहते है साला वो ही नहीं मिलता….
~ रोहित सुनार्थी
दिल में लगी है आग, बताएं कैसे।
गमों का आशियाना, दिखाएं कैसे।
बताएं या छुपाए, हार अपनी है।
अपने घरों की आग, बुझाएं कैसे।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
बारिश की ना हमे याद दिलाओ
उस बेवफा का नाम ना लब पे लाओ
दिल हमारा अब टूट गया
बारिश में ही वो रोता हमे छोड़ गया
~ जसबीर सिंह
कभी मुख्तसर खुशी कभी इंतहा ए ग़म हूं मैं
कभी ज़ख्मों की वजह तो कभी मरहम हूं मैं
इतने हिस्सों में बट चुका है किरदार मेरा
की आजकल मैं थोड़ा कम हूं मैं ।।
~ निर्मल
अधुरे ज़ज्बात, अधुरे लफ़्ज और अधुरी बात
अभी तो कितने ही सवाल मेरे यार बाकी हैं
अधुरी यादें, अधुरे ख्वाब और ये आधी रात
अब और क्या क्या सितम मेरे यार बाकी हैं
~ लीलाधर गोस्वामी
हाल अपना सुनाएं हम कैसे उन्हें,
वो तो ग़ैरों की महफ़िल में रमे जा रहे।
एक नज़र भी ना देखें वो मेरी तरफ़,
बेरुखी से हम उनकी मरे जा रहे।।
~ महेश ओझा (Mahesh Ojha)
कुछ ऐसे भी लोग होते हैं
जिनके मरने पे सब चैन से सोते हैं
कुछ ऐसे भी लोग होते हैं
जिनके मरने पे बादल भी रोते हैं
~ सुभम
एक अजनबी के घर में गुजारी है जिंदगी |
लगता है जैसे सफर में गुजारी है जिंदगी |
ये और बात है कि मैं तुझसे दूर हूँ,
लेकिन तेरे अशर में गुजारी है जिंदगी |
~ अब्दुल रहमान अंसारी (रहमान काका)
महफिल में हम भी उनको पहचानने से मुकर गए,
महफिल में हम भी उनको पहचानने से मुकर गए,
जब वह भी अनदेखा कर, नजदीक से गुजर गए ll
~ रवि कुमार गहतराज
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