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कोरोना मुक्त विश्व बनाना है

दोस्त कुछ ही चाहिए, आगे तक साथ निभाने को।
अनगिनत न सही गिनती के, पर सुन सके अनकहे भावों को।
भीड़ है बहुत यहाँ .. सब अपने राग में मग्न हैं।
तुमसे ही विश्व बना है… तुमसे ही विश्व बना है…
अपने राग को छोड़ कर अब इस राग पर आना है।
अपने आप को सुरक्षित रख कर दूसरों को जिताना है..
कोरोना मुक्त विश्व बनाना है।
अब तक कितने अपनो को खोया? अब किसका इंतज़ार है?
अब और नहीं जाने देना जानें आओ ऐसी दोस्ती निभायें,
हम भी जीतें… और दूसरों को भी जितायें।
आओ सब मिलकर इसे अपनी आवाज़ बनाएं..

 

~ Urvashi soni

 

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Heart Touching True But Sad Corona Shayari

Heart Touching Corona Shayari

 

गुजर रही हैं ज़िन्दगी ऐसे मुकाम से,
अपने भी दूर हो जाते हैं जरा सी झुकाम से
तमाम कायनात में एक कातिल बीमारी की हवा हो गयी
वक़्त ने कैसा सितम ढाया की “दूरिया ही दवा” हो गयी

~ unknown

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घर के बुजुर्ग, त्यौहार और प्यार

नफ़रतें छोड़कर मन से, प्रेम के गीत हम गाएं।
आपसी बैर को भूलें, अपनों से भी मिल आएं।
सभी त्योहार बतलाते, सदा प्रेम से रहना।
सभी घर के बुज़ुर्गों को, कभी मन से न बिसराएं।

~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’

 

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वक्त मिले तो खूद से भी मिल लेना

वक्त मिले तो खुद से भी मिल लेना!
अपने चहरे को दिल के आईने मे देख लेना!!
प्यार खुद से भी होगा तुम करके तो देखना!
वक्त मिले तो खुद से भी मिल लेना!!!!!

 

~ Manish

 

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ज़िन्दगी का हर दिन है बहार

खूबसूरत बहुत है दुनिया, नज़रिया बदल के तो देख एक बार।
रोने के होंगे सौ कारण बेशक, पर तू हंसने के कारण तो ढूंढ यार।
कभी वक्त बिता अपने साथ भी, कभी किसी की खुशी पर कर दिल निसार।
उमंग जब है तेरे मन में तो, इस ज़िन्दगी का हर दिन है बहार।

 

~ Mahira

 

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तुम जहां जाओ महफ़िलें लूट ल़ो

गुलाब की तरह ख़ुशमिज़ाज रहो।
चमकते-दमकते आफ़ताब रहो।
तुम जहां जाओ महफ़िलें लूट ल़ो।
सभी के ज़िगर में सरताज़ रहो।

 

~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’

 

 

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करीब होकर भी दूर

अगर वो कहता है तुम्हें बदलने को,
तो वो तुम्हें नहीं तुम्हारे बदले रूप को चाहता है,
होकर भी करीब तुम्हारे, वो तुम्हें अधूरा ही जान पाता है

 

~ Meri Pehchan

 

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चंचल मन मेरा

मन के अंदर झांक रहा है मन मेरा।
मन की भाषा बोल रहा है मन मेरा।
मन भावों का एक समुंदर होता है।
मन चंचल है घूम रहा है मन मेरा..।

 

~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’

 

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खुशियों का चांद, अब खिलता नहीं

उड़ा जाता है चांद, छोर मिलता नहीं।
खुशियों का चांद, अब खिलता नहीं।
चांद का रंग रूप, कुछ अलग ढ़ंग का।
अब चांदनी से चांद, कहीं मिलता नहीं।

 

~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’

 

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मेरे अपनों पर शायरी

चला जो मैं अपनों के खिलाफ, तो उनके एहसान बीच में आ गए
और की जो कुछ ख्वाइश मैंने, अपनों के अरमान बीच में आ गए
सच – झूठ को जो तोल के देखा, तो सोचा की सच का साथ दू,
पर मेरे अपनों के झूठ को बचाने, भगवान (संस्कार) बीच में आ गए

~ Atul sharma

 

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