उसने कहा हमसे के वो अब और रुक नही सकते,
मेने भी मासूमियत से पूछ लिया जाना जरूरी है क्या?
अभी तो कहानी शुरू ही हुई थी हमारी,
तुम्हारे हिसाब से तुम्हे लगती ये पूरी है क्या….
~ Pari
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Khwaabo ki ek lehar uthi, Duba jisme tann aur mann .
Tham sa gaya Wakt aur, Ruk se gaye kadam .
Na jane kis asamanjas mein, Ulajh chuka hai yeh bawla dil .
Samajh nahi aata tu dard hai ya malham .
Kaash na aate tum zindagi mein, Khushi ki bahaar lekar.
Kaash na jaate tum dil par yeh, Gehra ghaav dekar.
Kaash na milte kabhi ho, Jaate kahi ghum
Na jane kyun ujaad diya tumne, Ye sundar aur aabad chaman.
Jis se mila karti thi ronakbhari, Rahat tumhe kisi pal.
Har shaam hai roothi hui, Har din hai adhura .
Na jane kis asamanjas mein, Ulajh chuka hai yeh bawla dil.
Samajh nahi aata tu dard hai ya malham.
~ Kanchi Mistry
मैं खुद ही खुद को बयां करती हूं, अजीब सी लड़की हूं जाने क्या-क्या ही चाहती हूं,
छोटी – छोटी आंखों में सपने हजार देख के मुसाफिर बनना चाहती हूं,
है रस्ते अनजान फिर भी बेफ्रिक होकर मंजिल ढूंढना चाहती हूं
खोने का डर नहीं बस सपने पूरा करना चाहतीं हूं
दे साथ गर कोई जिंदगीभर शुक्रगुजार होना चाहती हूं
यूंह तो ख्वाइशें हर दिन बदलती रहती हैं
पर मेरी ख्वाइश कुछ ऐसी हो की बस उसी में खोकर रहना चाहती हूं…
मैं खुद को बस खुद ही से बयान करना चाहती हूं।
~ Dr.Ruchika Mehta
ख़्वाबों की एक लहर उठी, डूबा जिसमे तन और मन
थम सा गया वक़्त और रुक से गए हम
ना जाने जिस असमंजस में, उलझ चूका हैं ये बावला दिल
पता नहीं चलता, तू दर्द हैं या मलहम
काश ना आते तुम, ज़िन्दगी में ख़ुशी की बहार लेकर
काश ना जाते तुम, दिल पर ये गहरा घाव देकर
काश ना मिलते कभी, हो जाते कही गुम
हर शाम हैं रूठी, हर दिन हैं अधूरा
ना जाने जिस असमंजस में, उलझ चूका हैं ये बावला दिल
पता नहीं चलता, तू दर्द हैं या मलहम
~ Sanobar
पहले इश्क़ करने को जमाना चाहिये था,
तुम मिली तो सब पुराना चाहिये था।
कैद है मेरा प्यार इन दीवारो के पीछे,
रिहा करने को दोस्तना चाहिये था।
मिल्कियत बनायी है मेहनत से मैने,
एक घर खड़ा करने को तुम्हे ज़माना चाहिये था।
सुना है काफी दिन से चुप हूँ मै,
मुहँ खुल्वाने को तुम्हे हँसाना चाहिये था।
लफ्ज़ कम नही होती इश्क़ मे कभी भी,
तुम्हे बस एक बार बताना चाहिये था।
महफ़ूज रहा हर आँसु पलको पर,
अब रोने को बस एक अफसाना चाहिये था।
– प्रखर तिवारी
ग़ज़ल 1
ज़िक्र कुछ यार का किया जाये
ज़िन्दगी आ ज़रा जिया जाये हो
चुकी हो अगर सज़ा पूरी
दर्दे -दिल को रिहा किया जाये
चाँद छूने के ही बराबर है
मखमली हाथ छू लिया जाये
दर्द-ओ-ग़म की बहुत ज़रूरत है
चल कहीं दिल लगा लिया जाये
हसरतें ईद की अधूरी हैं
ख़ामुशी से जता दिया जाये
ग़ज़ल 2
इन्तिज़ार इन्तिज़ार है तो है एतिबार एतिबार है
तो है छोड़ कर मुझको सिर्फ़ इक वो चाँद हिज़्र का राज़दार है
तो है बावला दिल मेरी तो सुनता नहीं आपका इख़्तियार है
तो है मैं हूँ नादाँ अगर तो हूँ तो हूँ वो अगर होशियार है तो है
दीद का लुत्फ़ हो गया हासिल अब नज़र कर्ज़दार है तो है
ग़ज़ल 3
दर्द जब दिल का दुबाला हो गया
चेह्रा चेह्रा इक रिसाला हो गया
रात भर पढ़ते रहे हम चाँद को
आसमाँ इक पाठशाला हो गया
लोरियाँ माँ ने सुनाई और फिर
मेरे सपनों में उजाला हो गया
जब अना कुचली गई तो ये हुआ
आँख रोई दिल में छाला हो गया है
मुहब्बत आबे-ज़मज़म की तरह
पी लिया जिसने वो आला हो गया
– सारथी बैद्यनाथ