रगों में लहू बहता है मेरे पानी नहीं
ऐसा तो कोई नहीं जिसकी कोई कहानी नहीं
वो सबूत मांगता है उन्ही लम्हों का अक्सर
जिनकी यादें तो है मगर निशानी नहीं
ले लो मज़ा तुम भी इस मोहब्बत का
नई नई है अभी ज्यादा पुरानी नहीं
दबोच लो इस ज़िन्दगी को जैसे मछली हो कोई
गर फिसल गई ये तो फिर हाथ आनी नहीं ।
Very nice an right point