गुजर रही हैं ज़िन्दगी ऐसे मुकाम से,
अपने भी दूर हो जाते हैं जरा सी झुकाम से
तमाम कायनात में एक कातिल बीमारी की हवा हो गयी
वक़्त ने कैसा सितम ढाया की “दूरिया ही दवा” हो गयी
~ unknown
लॉकडाउन यह लॉकडाउन नहीं जीवन रक्षक मंत्र है
जिससे बचना है हमें उसका नाम कोरोना षड्यंत्र है|
जिसने इसे बनाया वह तो है अपनी मस्ती में
अब यह फैल रहा हम लोगों की बस्ती में|
यह ना देखे जात पात ना ही देखे कोई धर्म
यह तो अपने चक्कर में सब को लपेटे चाहे राजा हो या रंक|
फैले ना ये सब जगह इसलिए इस्तेमाल करे सैनिटाइज व मास्क
इन दोनों को देखकर ही कोरोना दूर से ही जाता भाग|
ना हाथ मिलाये ना गले मिले बस कुछ दिन की तो बात
एक बार सब ठीक हो जाए फिर मिलते रहिए दिन रात|
आओ हम सब मिलकर ये पहल करें
दूर दार रहकर ही चहल करें|
यह लॉकडाउन नहीं जीवन रक्षक मंत्र है
जिससे बचना है हमे उसका नाम कोरोना षड्यंत्र है|
~ माही गुप्ता
चलती हुयी राह से गुमराह हो गया था
ज़िन्दगी को लेकर बेपरवाह हो गया था
मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया था”?
नींद से मेरा नाता टूट सा गया था
भूख प्यास से भी ये मन रूठ सा गया था
मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया था”?
अकेलेपन से मानो प्यार हो गया था
एक सच्ची ख़ुशी के लिए दिल लाचार हो गया था
मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया था”?
अपनों के बिच में अनजान हो गया था
बिना वजह आँखों में आंसू लाना बड़ा आसान हो गया था
मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया था”?
आत्मविश्वास तोह मानों,.. जैसे खो गया था
आँखें तो खुली थी, मगर आत्मा कबका सो गया था
मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया था”?
~ शैलजा
जाने वाले क्या कभी लौट कर भी आते हैं
छोड़ गए थे जिसे क्या उसे वापस अपना बनाते हैं
जाने का मन तो वो बहुत पहले बनाते हैं
फिर क्यों किसी को बताकर नहीं जाते हैं
अपने ही घर से ये चोरों जैसा निकलना
भला उन्हें क्यों मुनासिब लगता है,
समझते क्यों नहीं यूं घर की लानतें भी साथ ले जाते हैं…
जाने से पहले वे मोहब्बत की जंजीर तोड़ क्यों नहीं देते हैं
नहीं दे सकते जो मोहब्बत का दाना पानी
तो प्रेम के पिंजड़े खोल क्यों नहीं देते हैं
अपनी शोहबत में जिसे करते थे रोशन
उसे जंगल के अंधेरे में अकेला छोड़ क्यों देते हैं…
क्यों अपना इंतजार मुल्तवी करके जाते हैं
लौट कर नहीं आना है ये सीधे क्यों नहीं बतलाते हैं
जब कर ही चुके होते हैं किसी और से दिलदारी गुफ्तगू
तब भी क्यों रखते हैं पहले सी जारी…
जो साथ निभाना नहीं आता तो क्यों झूठे कसमें वादे खाते हैं
अपनी आंखों से मासूम दिल पर खंजर क्योंकर चलाते हैं…
जाने से पहले वे अपने हुस्न को जो इतना सजाते हैं
अपने दिल का आईना क्यों नहीं चमकाते हैं…
घर के सारे साजो सामान जब अपने साथ ले जाते हैं
ले जाते हैं घर की रोशनी, हवा, खुशियां सारी
तो अपनी यादों को क्यों छोड़ जाते हैं
अपनी खुशबू को कोनों में बिखराकर उसे क्यों नहीं समेट जाते हैं…
अपनी जुदाई पर जो जीते जी मौत से अजीज कर देते हैं
पेट में छुरा भोंककर क्यों नहीं जाते हैं….
ये जाने वाले भी भला कहाँ लौटकर आते हैं
अपने तबस्सुम से महकाया था जिसे कभी
उसे लौटकर फिर गले लगाना तो दूर की बात
उसकी मौत पर दुआ करने भी वापस नहीं आते हैं
जाने वाले क्या कभी लौट कर भी आते हैं
छोड़ गए थे जिसे क्या उसे वापस अपना बनाते हैं
~ Nupoor Kumari