राहे रूकती हैं जब, ज़िन्दगी झुकती हैं तब
सर झुकता है जब, वक़्त रुकता हैं तब
जमाना हसंता हैं जब, सांसें रूकती हैं तब
बाहे दुखती हैं जब, हिम्मत रूकती हैं तब
शरीर खंजर सा हो जाता हैं, आत्मा बंजर सी हो जाती हैं
ना जाने क्यों ये ज़िन्दगी सिमट कर रह जाती हैं |
~ Suraj Yadav
Nice
so nice
I like this type shayri