0 मेरी मजबूरी को समझो मैं गुनाहगार नहीं Posted on September 3, 2020 by techi मेरी मजबूरी को समझो मैं गुनाहगार नहीं हूँ। मैं सच्चाई के साथ हूँ, झूठ का पैरोकार नहीं हूँ। भले ही तुम मेरी, मजबूरियां ना समझो। मैं तुम्हारा साथी हूँ कोई अपराधियों का यार नहीं हूँ। ~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’ Share This Related posts: तुम्हारे बदन से वो मोहब्बत की खूश्बू आती नहीं अब जीने में वो बचपन वाली बात नहीं हर किसी को हम प्यार कर लें इतना आवारा मत समझो कुछ मज़बूरी थी, जो हर कदम कांटो पर चल गए मैं जब मर जाऊं, मेरी अलग पहचान लिख देना जिस्म नहीं रूह को चाहा हैं कुछ जख़्म कभी नहीं भरते