0खुशियों का चांद, अब खिलता नहीं Posted on December 30, 2020 by adminउड़ा जाता है चांद, छोर मिलता नहीं। खुशियों का चांद, अब खिलता नहीं। चांद का रंग रूप, कुछ अलग ढ़ंग का। अब चांदनी से चांद, कहीं मिलता नहीं। ~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’ Share ThisRelated posts:परिवार का साथ, खु़शियों का सुंदर संसार आंसू दुःख के हैं और खुशियों के मेरी मजबूरी को समझो मैं गुनाहगार नहीं यह सच्चा प्रेम है, कोई बेवफ़ाई नहीं परेशान करना मेरी फ़ितरत नहीं अब तो मन भी रेगिस्तान जैसा पलटकर देखने पर 2 लाइन्स