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वो पिता अपना सब कुछ कुर्बान कर देता है

कभी बुरा मत कहना उस इंसान को
अरे तुम्हे खबर तक नही होती
और वो पिता अपना सबकुछ
तुम्हारे लिए कुर्बान कर देता है…

तुम्हारी ख्वाहिशो को पुरा करने के लिए
वो दुनिया से लड़ जाता है…
कदर करो उस पिता की
अरे वो तुम्हारे सपनो को पुरा करने के लिए
अपनी निन्दा तक को भुल जाता है…!!!

~ Dimple kushwaha

 

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परेशान करना मेरी फ़ितरत नहीं

किसी को परेशान करना मेरी फ़ितरत नहीं,
मेरी कोशिश है किसी के कुछ काम आ सकूँ
अपनी ज़िंदगी तो सभी जीते हैं आराम से,
मन से किसी के चेहरे पर मुस्कान ला सकूँ।

 

~ जितेंद्र मिश्र ‘बरसाने’

 

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ज़िंदगी तो चार दिन की

फूलों की तरह हमें सदा खिलना चाहिए,
प्रेमभाव से हमेशा हमें मिलना चाहिए।
ज़िंदगी तो चार दिन की जी भर जिएं,
निःस्वार्थ भाव से परमार्थ करना चाहिए।

 

~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’

 

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मां के बिना कैसी जीवन की डगर

मां तो ममता का घर होती है।
पास हो तो कहां ये खबर होती है।।
दूर होते हैं तब ये एहसास होता है।
कि मां के बिना कैसी जीवन की डगर होती है।।

 

~ Rb Verman Pratapgarhi

 

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गर्दिश में सितारे

हवाओं के इशारे होते हैं,
नदियों के भी किनारे होते हैं।
सिर्फ अहसास करने की बात है,
कभी कभी गर्दिश में सितारे ह़ोते हैं।

 

~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’

 

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झूठी शानोशौकत और दिखावा करने वालो पर 4 पंक्तिया

कभी कभी आदमी इतराता बहुत है,
होता कुछ नहीं पर दिखाता बहुत है।
झूठी शानोशौकत में जीना चाहता है,
भेद खुल जाने पर वह शर्माता बहुत है।

 

~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’

 

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कई आए इस जलती शमा को बुझाने

काले गरजते बादलों को धुआँ समझा हैं
मैंने आँधियों को भी हवा समझा हैं…

गिले शिकवे की मुराद हैं उन्हें हमसे
अब क्या बताए हमने दर्द को तो अपनी मेहबूबा समझा हैं

भरा दिल तोड़े कोई और वजह कोई
किसी को कितना कोसे अब हमने खुद को बेवफा समझा हैं

कई आए इस जलती शमा को बुझाने
यूँ ही बुझा जाए, क्या हलवा समझा हैं

 

~ Kshitij Muktikar

 

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ए खुदा तेरी रज़ा क्या है?

इन नसीहतों में मज़ा क्या है,
इन इनायतों में रखा क्या है,

जो मौलवी बने बैठे हैं यहाँ,
इनसे पूँछों इन्होंने करा क्या है।

भले आदमी का निशान क्या है,
असल नवाज़िश ए करम क्या है,

क्यों डरे भला क़यामत से इतना,
दर्द से निजात नहीं तो मौत क्या है,

इन तालिमों की वजह क्या है,
ए खुदा तेरी रज़ा क्या है,

हाँ मैं करता हूँ सवाल बोलो,
इन ग्रंथों में मेरी सज़ा क्या है।

~ Shubham Jain

 

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